Ideal Person,
Bhaisaheb Gurpreet Singh ji
(Rinku veer ji)
Formation of Trust
धन श्री गुरुनानक देव जी के मूल तीन सिधान्तो पे ट्र्स्ट की नींव रखी गयी है
नाम जपो
भाव: अमृतवेले उठकर 3 से 6 नाम जपो (सिमरन करो)
श्री गुरुनानक देव जी का हुक्म है कि अमृतवेले उठ नाम जब अर्थार्थ अमृतवेले याने सुबह 3 से 6 गुरु के नाम का सिमरन करना है उलहसनागर के भाईसाहब श्री गुरप्रीत सिंह जी कई सालों से देश विदेश मैं संगत को अमृतवेला से जोड़ रहे है। भाईसाहब जी ने कई शहरों मैं कथा कीर्तन कर अमृतवेले के महत्व को समजाया है और लोगो को अमृतवेला से जोड़ा है। अब तक देश विदेश मैं 350 से ज्यादा स्थानों पर अमृतवेला हो चुके है जहाँ संगत आकर अमृतवेले नाम जप्ती है। इस पहल को आगे बढ़ाते हुए अमरावतो निवासी श्री शंकर जी ओटवानी ने पूरे देश मे अब तक 137 शहरो मैं अमृतवेला शुरू करवाया है और यह सेवा अब भी जारी है, शंकर जी का कहना है कि बिना अमृतवेला के यह जीवन व्यर्थ है, यह इंसानी जीवन मिला ही है नाम जपने और सेवा करने के लिए है।
धर्म की कीर्त
भाव: ईमानदारी और मेहनत की कमाई करो
सच्चाई और मेहनत से कमाया हुआ धन ही धर्म की कीर्त कहलाता है। किसी को धोखा देखे या बईमानी से कमाया हुआ लाखो रुपया भी कोई काम का नही होता है। गुरु साहेब फरमाते है कि धर्म की कमाई का चढ़ाया हुआ एक पैसा भी परवान है और बेइमानी और ठगी से कमाये पैसो से लाखों रुपये भी परवान नही है।
Vission
नानक रोटी ट्रस्ट के एक लक्ष्य है कि गुरु नानक देव साहेब जी के मूल सिध्नतो को दुनिया के कोने कोने तक पहचान। और इस चलती फिरती लंगर सेवा को दुनिया के हर कोने कोने मैं पहुचाना है। ट्रस्ट के एक ही नारा है अब कोई भूखा नही सोयेगा
Mission
113 अमृतवेला दुख निवारण दरबार
पूरे देश मे 350 से भी ज्यादा अमृतवेला सिमरन स्थान है जहाँ हर रोज सुबह संगत आके नाम जप्ती है। पर बड़े दुख की बात है कि ट्रस्ट के पास नाम जपने के लिए अपना स्थान एक भी नही है। संगत कहा किसी के घर मे, कहा शत पे, कहा पार्किंग मैं, कहा खुले मैदान मे, कहा कहा पे तो भाड़े की जगह लेकर अमृतवेला हो रहा है। जिससे संगत को बहुत सी परिशनियो का सामना करना पड़ता है जैसे बदलते मौसम से, बारिश मैं, ठंड मैं संगत का बैठना मुश्किल हो जाता है। इसलिए गुरु सहेब जी को अरदास कर ट्रस्ट ने संकल्प लिया है कि 2025 की गुरू पूरब तक (गुरु नानक जयंती) तक पूरे देश मे खुद के 113 अमृतवेला दुख निवारण दरबार बनाना है जहा संगत अमृतवेले आके नाम जप सके और सिमरन कर सके। गुरु ने चाहा और संगत और दाताओ की मदत से लक्ष तारिक से पहले ही 113 स्थान का निर्माण हो जाएगा।